एक दिन मिल-बैठकर आओ विचारें हम सभी
किस तरह से हम बचें, जो आपदा आए कभी?
झट जमीं पर लेट जाएँ, लगे जो आग कपड़ों में कभी,
मोटी चादर, मोटा कंबल और या मोटी दरी,
आग कपड़ों की बुझाएँ, डालकर उन पर सभी।
खड़खड़ाएँ, खिड़कियाँ और काँपे जो धरती कभी,
झट से बाहर दौड़ जाएँ, बिन क्षण गँवाए एक भी,
घर की चौखट या कि कोने अल्प-रक्षक हैं सभी।
जा रहे मरुभूमि से हों और अंधड़ आए कभी,
या बगूला घूमता भी तुमको जो दिख जाए कभी,
बस जमीं पर लेट जाएँ आप रक्षा में तभी।
डूबने साथी लगे, जलस्रोत में नहाते कभी,
तो पास में उसके न जाएँ दूर ही उससे रहें,
फेंककर रस्सी या कपड़ा खींच लें उसको तभी।
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